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आओ, इक दुनिया बनाएं...जहां बेड़ियां न हो, बंदिशें न हों... और न हो लोक लज्जा भी। मुहब्बत ही मजहब हो, प्रेम का पैगाम हो, मैं कहूं तुम सुनो...तुम कहो, मैं सुनूं
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Showing posts from September, 2011
किसी अबोध का दुख, मेरी कलम द्वारा
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समाज कच्ची मिट्टी है और शिक्षक है कुम्हार
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