व्यवस्था पर सवाल


बचपन में हमारे बडे बुजुर्ग, हमारे स्कूल के शिक्षक, हर कोई हमारे आस पास हमें यही सिखाता था कि सच का साथ दो, ‍गलत को कतई मत अपनाओ, अन्याय का साथ देना अपराध होता है। लेकिन आज मैं देखती हूं तो लगता है कि आज के समय में शायद अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना ही सबसे बडा जुर्म है। और इस जुर्म के एक गुनहगार मेरे ही मित्र अंकुर सिंह हैं, जो लखनउ के चरक कॉलेज में बीएड के विद्ार्थी हैं। कॉलेज द्वारा मनमानी फीस वसूलने के विरोध में अंकुर ने जब आवाज उठाई तो कॉलेज के कार्यकर्ताओं ने उसे १५ दिनों के लिए ‍कॉलेज से निकाल दिया। शेष विद्ार्थीयों का आक्रोश जब इस घटना से बढ गया तो अंकुर को जान से मारने तक की धमकी दे दी गई। यह एक अराजक व्यवस्था की बेहद शर्मनाक घटना है। एसी घटनाएं हर रोज ना जाने कितनी होती हैं और हर उठाई गई आवाज को ऐसे ही दबा दिया जाता है या तो धमका कर या फिर कॉलेज से निकाल कर। लेकिन अंकुर ‍की आवाज दबने वाली नहीं है, वह आइ नेक्स्ट से ले कर दैनिक जागरण यानी कि हर अखबार और न्यूज चैनल में गुहार लगा चुका है। और इस गुहार का असर हम आज के दैनिक जागरण में भी देख सकते हैं। अंकुर जैसे लोग हमें साहसी होने व हिम्मत रखने की प्रेरणा देते हैं। यह सवाल हमें खुद से पूछना है कि अगर हम अंकुर की जगह होते तो क्या करते? और अब उसके लिए क्या कर सकते हैं?

Comments

  1. can you please write the matter to me at dilnawaz@dainikbhaskar.com

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