जब मैंने कुुुछ कहा नहीं तो तुमने सुना कैसे...
जब मैंने कुछ कहा नहीं तो तुमने सुना कैसे
मौन लफ्ज़ों को अल्फ़ाज़ों में बुना कैसे
अपने ख्वाबों में जब डूबी थी मैं
तुम कब आए मुझे पता भी नहीं
चौंक के जब मैं खुद को संभाल भी न पाई
तुमने मेरे मन को पढ़ा कैसे...
सुंदर से ख्याल जैसे तुम
मैं तो कुछ भी नहीं
सुलझे से किरदार जैसे तुम
और मैं अब तक अपना अस्तित्व खंगालती हुई
तुमने कैसे जाना कि मेरे मन में क्या है
अनकही बातों को तुमने गढ़ा कैसे...
अपनी ही परीकथाओं में कुछ भी बुनती-बिगाड़ती
मैं
मैं समझी थी कि तुम यूं ही कोई हो
तुमने मेरी अनसुलझेपन से लड़ा कैसे...
-साशा
Wow I liked the lines
ReplyDeleteअपनी ही परीकथाओं में कुछ भी बुनती-बिगाड़ती मैं
मैं समझी थी कि तुम यूं ही कोई हो
तुमने मेरी अनसुलझेपन से लड़ा कैसे...