एक छोटी सी कोशिश


बात २२ अक्तूबर को रात १० बजे की है। मुझे दिल्ली से लखनऊ एसी स्‍पेशल ट्रेन पकड़नी थी। पहाड़गंज की ओर से नई दिल्ली स्टेशन पर जब मैंने स्कैनिंग मशीन में अपना बैग अंदर रखा तो मैंने देखा कि एक आदमी झटके से बिना अपना बैग स्कैन कराए अंदर घुस गया, वहां तैनात पुलिसकर्मी के टोकने पर पहले तो वह घबराया, लेकिन फिर उसे रिश्‍वत देने लगा।
मुझे हैरानी तब हुई जब वहां पर तैनात पुलिस वाला थोड़ी आनाकानी करने के बाद पैसे लेने को तैयार हो गया। मैं उस पूरे प्रकरण को बड़े ध्यान से देख रही थी। उस दौरान मेरा बैग स्कैन हो कर कहां से कहां पहुंच गया, पता ही नहीं चला, या यूं कहा जाए कि उस प्रकरण के चलते उसका मुझे ध्‍यान ही नहीं रहा। अचानक पुलिस वाले की निगाह मुझ पर पड़़ी, तो उसने अपने हाथ वापस खींच लिए। लेकिन इसके बाद मेरा ध्‍यान बैग की ओर देखकर उसने चुपके से पैसे लेने के लिए हाथ बढ़ा लिया। वह फिर सम्‍भला, क्‍योंकि उसने मुझे यह सब कुछ घूरते देख लिया था और फिर पैसे लेने से इंकार कर दिया। तब तक मुझे मेरे बैग का ख्याल आया, मैंने नीचे देखा तो वह कोने में असहाय सा पड़ा हुआ था। मैंने उसे उठा कर जैसे ही वापस उस पुलिस ‍वाले की तरफ देखा तो तब तक वो पैसे ले चुका था।
मेरा ख्याल है कि वह मेरी नज़र पलटने के ही इन्तज़ार में था। पुलिस वाले ने उस आदमी को बैग समेत जाने दिया। मेरे मन में तमाम सवालात कौंध रहे थे, क्या वजह थी कि वह आदमी बैग न चै‍क कराने के एवज में पैसे देने तक को तैयार हो गया? उस बैग में बम, हथियार से ले कर जाने क्या क्या हो सकता था? अवैध रूपये भी हो सकते थे। क्या पुलिस वाले ने ये नहीं सोचा कि उसकी इस लापरवाही से हज़ारों लोगों की जान जा सकती थी? साथ ही वह अपने खुद के जीवन से भी ‍हाथ धो बैठ सकता था। क्या पैसे उसके लिए हर चीज़ से ऊपर उठ चुके हैं?
इन सब सवालों के साथ मैं खुद को रोक नहीं पाई और उस पुलिस वाले से जा कर कहा ‍कि आपने उससे पैसे ले कर ठीक नहीं किया, वह भौंचक्का हो कर मुझे देखने लगा। मैंने आगे कहा, आप महज अपने स्वार्थ के लिए हजारों लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते। इस पर उस पुलिस वाले ने कहा कि मैंने किसी से पैसे नहीं लिए।
मैंने कहा कि आपको पैसे लेते हुए मेरे अलावा बहुत लोगों ने देखा है, इसलिए आप झूठ न बोलें। मेरे यह कहने पर वह घबरा गया और अपनी वर्दी पर लगी अपनी नेमप्लेट छुपाने लगा। मैंने कहा कि घबराइये मत, मैं आप‍की शिकायत नहीं करूंगी, मेरा कहना बस इतना है कि आपको ऐसा हरगिज़ नहीं करना चाहिये था। आप यहां यात्रियों की सुरक्षा के लिए तैनात हैं लेकिन आपका यह कृत्‍य न जाने कितनों को मौत के कगार पर ला खड़ा कर सकता है। आपका भी कोई अपना व्‍यक्ति ऐसे किसी पुलिसकर्मी के स्‍वार्थ के चलते अपनी जान धो बैठ सकता है। तनिक सोचियेगा कि तब आप पर क्‍या बीतेगी, अगर आपके साथ ही ऐसा हादसा हो जाए।
पता नहीं मैंने सही किया या गलत? पता नहीं मुझे उसकी शिकायत करनी चाहिये थी या नहीं? पता नहीं उस पुलिस वाले पर इसका प्रभाव पड़ा होगा या नहीं? पर उस समय मुझे जो ठीक लगा मैंने किया। हां, इतना याद है कि आखिर ‍में उसने मुझसे सॉरी कहा था। और कुछ हो चाहे नहीं, लेकिन उस सॉरी शब्‍द ने मुझे इतनी तो तसल्‍ली दे ही दी कि अभी सब कुछ खत्‍म नहीं हुआ है। गलती या अपराध को महसूस कर यदि कोई उसे सुधारना चाहता है तो इसका स्‍वागत किया जाना चाहिए। हां, बेशक, यह गलती नहीं, अपराध था, जिसकी सजा तो मिलनी ही चाहिए।

Comments

  1. हां, बेशक, यह गलती नहीं, अपराध था, जिसकी सजा तो मिलनी ही चाहिए।,,,, ACCHA LIKHA HAI,,JARI RAKHIYE

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