एक असुरक्षित समाज और भ्रष्‍ट व्‍यवस्‍था

बाराबंकी में कोठी थाने परिसर में एक महिला को जिन्दा फूंक डाला गया। बुरी तरह जल चुकी महिला ने मरने के पहले बयान दिया था कि पुलिसवालों ने पहले तो उसके साथ बलात्कार की कोशिश की, और जब उसने विरोध किया तो पुलिसवालों ने उसे जिन्दा फूंक दिया। अगले दिन लखनऊ में इस महिला ने दम तोड़ दिया।
मोहनलालगंज में शिक्षिका पर एसिड फेंका गया। बाल-बाल बच गई, पर झुलस सकती थी। अपना रंग- रूप खो सकती थी। सबसे बड़ी बात अंतरआत्मा नष्ट हो सकती थी उसकी, लेकिन बचने के बाद भी क्या कुछ बचा होगा उसके पास? घर से बाहर निकल भी जाए तो पीछे से हर गुजरने वाली बाइक की आवाज सुन कर रूह कांप उठती होगी उसकी। समाज को दिशा देने वाली शिक्षिका को भी नहीं बख्शा इन मनचलों ने।
फिर हम भरोसा किस पर करें?
पुलिस पर? कहीं नोंच खसोट पर पुलिस ही न खा जाए। समाज पर? जो खड़ा खड़ा केवल तमाशा देख लेता है। या फिर सिस्टम का? जो बस केवल निलंबन कर सकता है, वो भी बेवजह। असल गुनहगारों का तो बाल भी बांका नहीं होता।
नहीं नहीं जाओ। मैं नहीं मानती ऐसी व्यावस्था को। हरगिज नहीं। अपनी व्यवस्था तो मैं खुद ही बनाऊंगी। मुझे सुरक्षित रहने के लिए तुम्हारी घटिया व्यवस्था की तो बिलकुल जरूरत नहीं। मेरे पिता द्वारा दिया गया आत्मविश्वास काफी है मेरी हिफाजत के लिए। बाकी देख लिया जाएगा।
चेतावनी-बस जरा महिलाओं की इज्जत करना सीख जाओ, कहीं हमारा ‘थोबड़ा बिगाड़ो’ अभियान शुरू हो गया तो तुम्‍हारा तेल निकाल देंगे। फिर मत कहना।



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