कर्णनत्व में ऊर्जा बटोरते हैं सकलेचा


उनका मानना है कि पढ़ाने से उन्हें ऊर्जा मिलती है। वे शायद सियासत की उस लुप्‍तप्राय श्रेणी में आते हैं जिसमें राजनीति से ज्यादा जनता का हित महत्वपूर्ण है। इसीलिए उनके इस दर्शन ने उनकी संस्‍था ‘युवाम’ को एक बेमिसाल शिखर पर पहुंचा दिया है। कुछ भी हो, उनके काम और विचार ने प्रचलित राजनीति से अलग एक सुखद आश्‍चर्य का अहसास तो कराया ही है और साथ ही साबित भी किया है कि ऐसे लोग भी हैं आज, जो मौजूदा आपाधापी वाली राजनीति में होने के बावजूद सामाजिक होने की अपनी प्रतिबद्धता का इतिहास रच रहे हैं।
मैं बात कर रही हूं मध्य प्रदेश के रतलाम नगर के विधायक पारस सकलेचा की। जहां घोटालों का नाम आते ही नेताओं की सूरत सामने आती हों, वहीं शिक्षा और  आदर्शों की बात होते ही पारस सकलेचा का नाम ध्यान में न आए, ऐसा मुमकिन नहीं।
खाली समय में आप उन्हें प्रतिपक्ष दल के पैंतरों से निपटने की रणनीति बनाते देख सकते हैं। वे चालू धंधेबाज नेताओं की तरह गैरकानूनी पैसा और ताकत  बटोरने में नहीं जुटे रहते, बल्कि अपनी संस्था ‘युवाम’ के तले छात्रों को बैंक व अन्य क्षेत्रों में रोजगार प्राप्त करने के तरीके बताते-पढ़ाते मिलेंगे। उनके युवाम में जरूरतमंद छात्रों को यह शिक्षा बिल्कुल निशुल्क बांटी जाती है।
रतलाम जैसे छोटे नगर से शुरू की गई ये कोशिश आज राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश व छत्तीसगढ़ में भी चल रही हैं। इन केन्द्रों में ज्यादातर थांदला, झाबुआ, बड़वानी जैसे आदिवासी अंचलों के युवा आते हैं जिनके पास शिक्षा के संसाधनों की कमी होती है। २३ वर्ष में जहां युवक अपना भविष्य सुरक्षित करने में लगे होते हैं वहां १९७७ में सकलेचा ने ‘युवाम’ की स्थापना ‍कर युवाओं का मुफ्त कोचिंग देनी शुरू की। आज वे बेहद गर्व से बताते हैं कि ‘युवाम’ के तहत पिछले ३४ वर्षों में १ लाख से भी ज्यादा युवा बैंक व अन्य सेवाओं में नौकरी हासिल कर चुके हैं। भारतीय नेताओं को सकलेचा से सीख लेनी चाहिये। सकलेचा का यह वाक्य जोश भर देता है कि, ‘पढ़ाने से मुझे ऊर्जा मिलती है’।  

Comments

  1. Accha kaam kar rahe logo ke bare me likhna ek bahut hi nek kaam hai,,Badhai ho Sasha ,,, jari rakhna ,,,

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